इंद्रहार पास- यात्रा वृतान्त: मित्रों! हिमाचल प्रदेश को देवभूमि की उपमा दी जाती है! जहाँ तक मेरा मानना है, इसके पीछे का सबसे बड़ा कारण हिमाचल प्रदेश के विभिन्न क्षेत्रों की प्राकृतिक और नैसर्गिक सुंदरता है, तभी तो देवी-देवताओं ने भी इन्हीं स्थानों को अपना निवास-स्थान बनाया हुआ है!
सारांश:
इसी कड़ी में आज मैं बात करूंगा इंद्रहार पास की जो हिमालय की धौलाधार पर्वत श्रंखला की गोद में स्थित है! इंद्रहार पास सदियों से सैलानियों और प्रकृति प्रेमियों को अपनी ओर आकर्षित करता रहा है! अगर आज के परिपेक्ष्य में देखें तो पर्यटन क्षेत्र में इस स्थान का एक विशेष महत्व है! इंद्रहार पास भ्रमण मध्यम स्तरीय साहसिक गतिविधि की श्रेणी में आता है! इसी वजह से इंद्रहार पास को देखने व इसकी नैसर्गिक सुंदरता का आनंद लेने के लिए सभी आयु वर्ग के पर्यटक भारी संख्या में यहां आते हैं!
वास्तव में यह साहसिक मार्ग गलूं माता मन्दिर, समीप धर्मकोट क्षेत्र से शुरू होता है जिसके पश्चात पहला पड़ाव त्रिउंड में होता है! त्रिउंड में रात्रि विश्राम करने के पश्चात पर्वतारोही अपना अगला पड़ाव इलाका में डालते हैं! उससे लगभग दो घंटे की दूरी पर लहास-गुफ़ा भी है, जहाँ बड़ी-बड़ी अस्त व्यस्त पर्वतीय चट्टानों को पार कर कई सैलानी प्रथम दिवस भी पहुँच जाते हैं! परंतु, रात में विश्राम हेतु बेहतर स्थान इलाका ही है!
इंद्रहार पास- यात्रा वृतान्त:
इंद्रहार पास के लिए अगली सुबह इसी पड़ाव से यात्रा शुरू होती है! यह मार्ग अपेक्षाकृत सबसे कठिन है! क्योंकि आपको उसी दिन सायं-काल से पूर्व इलाका वापिस आना होगा रात्रि-विश्राम हेतु! इलाका से सुबह जल्दी चलने पर लहास-गुफ़ा में अल्प-विश्राम करते हैं! तत्पश्चात लगातार चढ़ाई वाला मार्ग आरम्भ होता है! मार्ग में आसपास का भौगोलिक दृश्य हर किसी को विस्मित और मंत्रमुग्ध कर देता है!
इंद्रहार पास पहुँचने पर उत्तर दिशा की तरफ देखें तो चिरकालीन पीरपंजाल पर्वत श्रंखला, दक्षिण में कांगड़ा घाटी और पंजाब क्षेत्र, पूर्व में बड़ा भंगाल और मणिमहेश तथा पश्चिम में और कश्मीर राज्य का किश्तवाड़ क्षेत्र दिखाई देता है!
वैसे इंद्रहार पास की यात्रा के लिए उत्तम समय मई से लेकर अक्टूबर का होता है!
इंद्रहार पास- यात्रा वृतान्त:
विस्तृत यात्रा वर्णन:
इस लेख में मेरे एक मित्र राहुल देव जी ने बहुत सहयोग दिया है, जो एक उच्च-श्रेणी के योगा विशेषज्ञ व पर्वतारोही हैं! उनकी ही जुबानी इस यात्रा का विस्तृत वर्णन इस प्रकार से है:
प्रथम दिवस
मैकलोडगंज से त्रिउंड पहुंचना
दूरी: 9 किलोमीटर, समय: 4 से 5 घंटे
गत रात्रि मैक्लोडगंज में विश्राम करके व पूर्व-यात्रा की थकान मिटाने के बाद अगली सुबह 8:00 बजे मैंने यहाँ से अपने समूह के साथ एक टैक्सी (500 रूपए) किराए पर ली और धर्मकोट की ओर हम निकले, जो यहाँ से 4 किलोमीटर की दूरी पर है! यहाँ पर पक्की सड़क ख़त्म हो जाती है! वैसे तो धर्मकोट से गलूं माता मंदिर तक एक कच्ची सड़क भी है (दूरी लगभग 4 किलोमीटर), पर, क्योंकि मेरे इस समूह में अधिकतर युवा थे, तो हमने गलूं माता के मन्दिर तक पैदल ही चलने का निर्णय लिया! वहां पहुँच कर हमारा पंजीकरण हुआ! हमारा नाम, पता, पहचान पत्र आदि की जांच की गई व कब तक वापिस आयेंगे, इस बारे भी जानकारी दर्ज की गई! कुछ विदेशी सैलानी भी थे वहां, पंजीकरण हेतु उनके पासपोर्ट की जांच की गई! मुझे लगता है कि सुरक्षा के हिसाब से यह बहुत जरूरी भी है!
हम लोग पूरे रास्ते में इस अद्वितीय प्रकृति का आनंद लेते और लोक-गीत गुनगुनाते 12 बजे के करीब त्रियुंड पहुँच गये! आपको बता दूं कि, सामान्यत: त्रिउंड को प्रथम दिवस का पड़ाव मानकर रात्रि विश्राम यहीं किया जाता है! यहां पर वन विभाग का एक विश्रामगृह भी है, जहां पर उपलब्धता अनुसार करने हेतु करने कमरा (पांच कमरे उपलब्ध) मिल सकता है! इसके साथ-साथ आप यहाँ पर कैंपिंग प्रदाता व्यवसाईयों से भी रात्री-विश्राम हेतु टेंट किराए पर ले सकते हैं (पर्यटन-सीजन के हिसाब से किराया दरें भिन्न हो सकती हैं)! खैर! हम लोग तो अपना टेंट लेकर गये थे! हमने वन विभाग से पर्ची कटवाई और अपना टेंट वहां लगा दिया! रात होते होते भूख लगी थी तो आज हमने वहीँ पर मौजूद एक भोजनालय में खाना खाया! भोजन साधारण था, परन्तु बहुत स्वादिष्ट लगा! चल कर थक गये थे, अब सोने की बारी थी!
द्वितीय दिवस
त्रिउंड से इलाका पहुंचना
दूरी: 5 किलोमीटर, समय: 3 से 4 घंटे
त्रिउंड से निकलकर आज हमारा अगला पड़ाव इलाक़ा है! आज सुबह जल्दी तैयार होकर इलाक़ा पहुंचना है! बाकी तो सब ठीक था, बस एक समस्या आई यहाँ और वो थी शौचालय का न होना, तो आज खुले में ही कोना पकड़ना पडा! निश्चित ही एक मुख्य पर्यटन पड़ाव होने के कारण प्रशासन को इस तरफ़ अवश्य ध्यान देना चाहिए! खैर! शिव जी का मंगलमयी यात्रा एवं सुरक्षित वापसी हेतु आशिर्वाद ले कर हम त्रियुंड से आगे बढ़ गये!
रास्ते में कुछ अस्थायी दुकानें मिली, जहां पानी की बोतलें, बिस्कुट, नमकीन और कुछ फ़ास्ट-फ़ूड भी उपलब्ध था! कीमत ज्यादा थी, परन्तु इस स्थान तक इन उत्पादों को पहुंचाना भी आसान नहीं! कुछ सामान मैंने भी लेकर अपने बैग में डाल दिया! लगभग एक-डेढ़ घंटा चलने के उपरान्त हम लोग स्नो-लाइन कैफ़े पहुंचे! यहाँ एक-दो दुकानें हैं, छोटी-मोटी खाने-पीने की चीज़ें मिल जाती है! वहां हमने चाय पी! सच में आनंद आ गया!
इंद्रहार पास- यात्रा वृतान्त:
परन्तु, एक बात मुझे अच्छी नहीं लगी! वो ये कि कुछ लोग रास्ते में ऐसे मिले जो चलते-चलते शराब पी रहे थे! तर्क ये था कि ताकत मिलेगी! परन्तु, मेरी मानें तो ऐसा कदापि न करें! अगर आपको मदिरा-पान करना ही है तो पहले पड़ाव तक तो पहुंचे भाई! क्योंकि, शराब हमारे शरीर से ऑक्सीजन के स्तर को कम कर देती है और निरन्तर चढ़ाई करने पर कोई आपात स्वास्थ्य समस्या का सामना करना पड सकता है! खैर! अब हम इलाका पहुँच गये थे! अभी दोपहर के डेढ़ बजे हैं!
समूह के कुछ सदस्यों ने टेंट लगाने शुरू कर दिए! त्रियुंड से निकलते निकलते हमने कुछ भोजन पैक करवा लिया था! पहले सबने वही खाया और थोडा विश्राम किया! मैं यहाँ पहले भी आ चुका हूँ, तो मैंने सोचा कि क्यों न आज इसी लहास-गुफ़ा में रात बिताई जाए! अपने समूह से हम तीन मित्रों ने अलविदा ली और लहास गुफ़ा के लिए निकल गये! जाने से पहले हमने कुछ लकड़ियाँ, मैगी, पानी और अपने स्लीपिंग बैग साथ में ले लिए (लहास गुफ़ा क्षेत्र में कोई वनस्पति नहीं है, अतैव लकड़ी का जुगाड़ पीछे से ही करके आयें)! वैसे तो लहास गुफ़ा में काफी जगह है 20-22 लोग सो सकते हैं, परन्तु गुफा की ऊंचाई कम होने के कारण उतनी आरामदायक नहीं है! प्रथमतय: आने वाले मित्रों को यही सलाह दूंगा कि आप इलाक़ा में ही रात्रि-विश्राम हेतु रुकें! लहास गुफ़ा समुद्र तल से 3500 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है!
निश्चित ही यह स्थान बहुत ही रमणीक है इस कंदरा को देखना व इसमें घुसने पर आदिम युग की यादें ताजा हो जाती है!
रात को हमने अंगीठा जलाकर मैगी और चाय बनायी व संगीत और नृत्य का आनंद लिया! रात करीब 10 बजे हम तीनों अपने अपने स्लीपिंग बैग में घुस गये, सुबह जल्दी उठकर नाश्ता, इलाक़ा में अपने समूह के साथ जो खाना था!
इंद्रहार पास- यात्रा वृतान्त:
तृतीय दिवस
इंद्रहार पास के दर्शन
दूरी: 9 किलोमीटर, समय: 5 घंटे
इस दिन की मेरे समूह के सभी सदस्य बड़ी आतुरता से प्रतीक्षा कर रहे थे! क्योंकि आज उनको इंद्रहार पास देखने का मौका जो मिलना था! हम तींनों भी नाश्ते के समय पहुँच गये इलाका! फ़टाफ़ट भोजन किया और थोडा रास्ते के लिए पैक भी कर लिया! अब सुबह के 9:30 बज रहे थे और हमारा समूह भगवान् शिव का उद्घोष लगा कर इंद्रहार पास के दर्शन हेतु निकल पड़ा! करीब 11 बजे हम लहास-गुफ़ा पहुंचे और वहां अल्प-विश्राम ही किया! क्योंकि, आज ही सांय-पूर्व इलाक़ा वापिस भी तो आना है, क्योंकि इंद्रहार पास पर रुकने का कोई उचित स्थान नहीं है और लहास-गुफ़ा का तो आपको पहले बता ही चुका हूँ!
यहाँ से अब हमने लगातार चढ़ाई चढ़ना शुरू किया! यह मार्ग पिछले पडावों की अपेक्षा कठिन है! खैर! अब हम अपने गंतव्य पर पहुँच चुके थे! वाह! क्या नज़ारा है! ऐसा लग रहा है कि किसी दूसरे लोक से पृथ्वी को देख रहे हैं! चारों तरफ अति विस्मरणीय दृश्य, इसी आनंद लिए ही तो इतना कष्ट उठाया! उत्तर दिशा की तरफ देखा तो चिरकालीन पीरपंजाल पर्वत श्रंखला, दक्षिण में कांगड़ा घाटी और पंजाब क्षेत्र, पूर्व में बड़ा भंगाल और मणिमहेश तथा पश्चिम में और कश्मीर राज्य का किश्तवाड़ क्षेत्र दिखाई दे रहा था! लगभग एक घंटा वहां पर रुकने के उपरान्त हम इलाक़ा के लिए वापिस मुड गये!
मित्रों! एक बात और बताना चाहता हूँ कि, चढ़ाई चढ़ने से ज्यादा कठिन है नीचे उतरना! 95% पर्वतारोहण सम्बन्धी दुर्घटनायें ढलान से उतरते हुए ही होती हैं! अतः सावधानी से वापिस आयें और कोई भी शोर्ट-कट न लें!
इंद्रहार पास- यात्रा वृतान्त:
चतुर्थ दिवस
अंतिम दिन (धर्मकोट के लिए वापसी)
दूरी: 12 किलोमीटर, समय: 4 घंटे
इंद्रहार पास के अद्भुत साक्षात्कार और नैसर्गिक सौंदर्य के अभूतपूर्व अनुभव उनकी यादों की को अपने अंतर्मन में समेट कर हमारा समूह धर्मकोट की तरफ प्रातः होते ही प्रस्थान करता है! क्योंकि मार्ग में ढलान है अतः सफर अपेक्षाकृत तीव्र गति से तय किया जा सकता है!
सुबह 9:00 बजे इलाक़ा से निकल कर हम 1 बजे के आस पास धर्मकोट पहुंचे! वहां हमने भोजन किया और एक टैक्सी लेकर निकल पड़े धर्मशाला के लिए! आज मेरी बस जो है बिलासपुर के लिए! मन तो था कि अभी और भी घूमूँ यहाँ, पर कल ऑफिस जाना होगा!
इंद्रहार पास- यात्रा वृतान्त:
ध्यान रखने योग्य बातें:
अपने साथ गर्म कपड़े जरुर अवश्य रखें! पर्वतारोहण हेतु अच्छे किस्म के जूते अवश्य पहनें!
पानी की बोतल, खाने-पीने का कुछ सामान, बैग, धूप का चश्मा, कैमरा, टोपी, टॉर्च, जरूरी दवाइयां इत्यादि अवश्य साथ रखें! इस यात्रा को सामूहिक यात्रा के तौर पर ही करना उत्तम है!
अगले यात्रा-वृतान्त में यहाँ से चम्बा वाले साहसिक मार्ग के अनुभव आपसे सांझा करूँगा!
इंद्रहार पास- यात्रा वृतान्त:
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बहुत बढ़िया भाई जी
Thanks Anil ji! Yes! We can reach Chamba through same Trek. I will share this Trek in my upcoming Travel Blog.
Thanks for your kind words and appreciation.
Thanks Anil Bhai for your kind words. I will cover Chamba one in my upcoming Travel Blog.
बहुत बढ़िया जानकारी लेकिन अनिल दीक्षित के अनुसार इस रास्ते से क्या चंबा जाया जा सकता है क्या
Thanks Pratik Bhai! Yes! We can reach from a trek. I will be sharing it in my upcoming blog.
बहुत ही सरल और जानकारी से भरा लेखन। इंद्रहार का भी मन है जाने का एक बार।
आपका स्वागत है भाई साहब! अप्रैल माह या उसके बाद कार्यक्रम बना लें!